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सम॑ध्व॒रायो॒षसो॑ नमन्त दधि॒क्रावे॑व॒ शुच॑ये प॒दाय॑। अ॒र्वा॒ची॒नं व॑सु॒विदं॒ भगं॑ नो॒ रथ॑मि॒वाश्वा॑ वा॒जिन॒ऽआ व॑हन्तु ॥३९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सम्। अ॒ध्व॒राय॑। उ॒षसः॑। न॒म॒न्त॒। द॒धि॒क्रावे॒वेति॑ दधि॒ऽक्रावा॑ऽइव। शुच॑ये। प॒दाय॑ ॥ अ॒र्वा॒ची॒नम्। व॒सु॒विद॒मिति॑ वसु॒ऽविद॑म्। भग॑म्। नः॒। रथ॑मि॒वेति॒ रथ॑म्ऽइव। अश्वाः॑। वाजिनः॑। आ। व॒ह॒न्तु॒ ॥३९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:34» मन्त्र:39


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (उषसः) प्रभात समय (दधिक्रावेव) अच्छे चलाये धारण करनेवाले घोड़े के तुल्य (शुचये) पवित्र (पदाय) प्राप्त होने योग्य (अध्वराय) हिंसारूप अधर्मरहित व्यवहार के लिये (सम्, नमन्त) सम्यक् नमते अर्थात् प्रातःसमय सत्त्व गुण की अधिकता से सब प्राणियों के चित्त शुद्ध नम्र होते हैं (अश्वाः) शीघ्रगामी (वाजिनः) घोड़े जैसे (रथमिव) रमणीय यान को वैसे (नः) हमको (अर्वाचीनम्) इस समय के (वसुविदम्) अनेक प्रकार के धनप्राप्ति के हेतु (भगम्) ऐश्वर्ययुक्त जन को प्राप्त करे, वैसे इनको आप लोग (आ, वहन्तु) अच्छे प्रकार चलावें ॥३९ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में दो उपमालङ्कार हैं। जो मनुष्य प्रभात वेला के तुल्य विद्या और धर्म का प्रकाश करते और जैसे घोड़े यानों को वैसे शीघ्र समस्त ऐश्वर्य को पहुँचाते हैं, वे पवित्र विद्वान् जानने योग्य हैं ॥३९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(सम्) (अध्वराय) अहिंसामयाय व्यवहाराय (उषसः) प्रभाताः (नमन्त) नमन्ति (दधिक्रावेव) यथा धारकः क्रमितोऽश्वस्तथा (शुचये) पवित्राय (पदाय) प्रापणीयाय (अर्वाचीनम्) इदानीन्तनम् (वसुविदम्) येन वसूनि विविधानि धनानि विन्दति तम् (भगम्) ऐश्वर्ययुक्तम् (नः) अस्मान् (रथमिव) रमणीयं यानमिव (अश्वाः) आशुगामिनः (वाजिनः) तुरङ्गाः (आ) (वहन्तु) गमयन्तु ॥३९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! उषसो दधिक्रावेव शुचये पदायाऽध्वराय सन्नमन्त वाजिनोऽश्वा रथमिव नोऽर्वाचीनं वसुविदं भगं प्रापयन्ति तथैतो भवन्त आ वहन्तु ॥३९ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र द्वावुपमालङ्कारौ। ये मनुष्या उषर्वद् विद्याधर्मौ प्रकाशयन्ति, अश्वयानानीव सद्यः समग्रमैश्वर्य्यं सर्वान् प्रापयन्ति, ते शुचयो विद्वांसो विज्ञेयाः ॥३९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात दोन उपमालंकार आहेत. जी माणसे प्रातःकालीन प्रकाशाप्रमाणे विद्या व धर्माचा प्रकाश करतात व घोडे, याने वेगाने चालवितात तसे संपूर्ण ऐश्वर्य प्राप्त करून देण्यात जे साह्य करतात ते पवित्र विद्वान समजावेत.